छंद
छन्द-,संस्कृत वाङ्मय, जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ
सामंजस्य प्राप्त करा के उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु
मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था कर दी जाती है तो वह एक विशिष्ट नाम
वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि।
छन्दों की रचना और गुण-अवगुण के अध्ययन को छन्दशास्त्र
कहते हैं;
आचार्य पिंगल द्वारा रचित 'छन्दःशास्त्र' सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है, इस शास्त्र को पिंगलशास्त्र
भी कहा जाता है
छंद के अंग
छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं -
·
गति -
पद्य के पाठ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं।
·
यति -
पद्य पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं।
·
तुक -
समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते
हैं।
·
मात्रा - वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे
मात्रा कहते हैं। मात्रा २ प्रकार की होती है लघु और गुरु। ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है। लघुमात्रा का मान १ होता है और उसे। चिह्न से
प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान मान २ होता है और उसे ऽ चिह्न से
प्रदर्शित किया जाता है।
·
गण -
मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये तीन वर्णों के
समूह को एक गण मान लिया जाता है। गणों की संख्या ८ है - यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगणh (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)।
गणों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा।,सूत्र के पहले आठ वर्णों में
आठ गणों के नाम हैं। अन्तिम दो वर्ण ‘ल’ और ‘ग’ छन्दशास्त्र के दग्धाक्षर हैं।
“जिस गण की मात्राओं का
स्वरूप जानना हो उसके आगे के दो अक्षरों को इस सूत्र से ले लें जैसे ‘मगण’ का स्वरूप जानने के लिए
‘मा’ तथा उसके आगे के दो अक्षर- ‘ता रा’ = मातारा (ऽऽऽ)।“
गण’ का
विचार केवल वर्ण वृत्त में होता है मात्रिक छन्द इस बंधन से मुक्त होते हैं।
।
ऽ ऽ ऽ । ऽ । । । ऽ
य मा ता रा ज भा न स ल गा
गण
|
चिह्न
|
उदाहरण
|
प्रभाव
|
यगण
(य)
|
।ऽऽ
|
नहाना
|
शुभ
|
मगण
(मा)
|
ऽऽऽ
|
आजादी
|
शुभ
|
तगण
(ता)
|
ऽऽ।
|
चालाक
|
अशुभ
|
रगण
(रा)
|
ऽ।ऽ
|
पालना
|
अशुभ
|
जगण
(ज)
|
।ऽ।
|
करील
|
अशुभ
|
भगण
(भा)
|
ऽ।।
|
बादल
|
शुभ
|
नगण
(न)
|
।।।
|
कमल
|
शुभ
|
सगण
(स)
|
।।ऽ
|
कमला
|
अशुभ
|
छंद के प्रकार
मात्रिक छंद ː जिन छंदों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छंद कहा
जाता है। जैसे - दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई
·
वर्णिक छंद ː वर्णों की गणना पर आधारित छंद वर्णिक छंद कहलाते हैं। जैसे - घनाक्षरी, दण्डक
·
वर्णवृत ː सम छंद को वृत कहते हैं। इसमें चारों चरण समान होते
हैं और प्रत्येक चरण में आने
वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता है। जैसे
- द्रुतविलंबित, मालिनी
·
मुक्त छंदː भक्तिकाल तक मुक्त छंद का
अस्तित्व नहीं था, यह आधुनिक युग की देन है। इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' माने जाते हैं। मुक्त छंद नियमबद्ध नहीं
होते, केवल स्वछंद गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छंद की विशेषता हैं।
·
मुक्त छंद का उदाहरण -
आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर –
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर –
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
छंदों के कुछ प्रकार
हिन्दी मे छंद
दोहा
दोहा मात्रिक छंद है। यह अर्द्ध सम मात्रिक छंंद कहते
हैं । दोहे में चार चरण होते हैं।
इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और
सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ
होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना
आवश्यक होता है। उदाहरण -
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
रोला
रोला मात्रिक सम छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं। उदाहरण -
यही सयानो काम, राम को सुमिरन
कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
सोरठा
सोरठा मात्रिक छंद है और यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। उदाहरण -
सोरठा
सोरठा मात्रिक छंद है और यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। उदाहरण -
जो सुमिरत सिधि
होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ
गुन सदन॥
चौपाई
चौपाई मात्रिक सम छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। उदाहरण -
चौपाई
चौपाई मात्रिक सम छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। उदाहरण -
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
कुण्डलिया
कुण्डलिया विषम मात्रिक छंद है। इसमें छः चरण होते हैं अौर प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं। दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होता है। उदाहरण -
कुण्डलिया विषम मात्रिक छंद है। इसमें छः चरण होते हैं अौर प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं। दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होता है। उदाहरण -
बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय
काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय
जग में होत हँसाय चित्त में चैन न पावै
खान पान, सम्मान, राग-रंग मनहिं न भावै।
कह गिरधर कविराय दु:ख कछु टरहिं न टारे
खटकत है जिय माहिं कियो जो बिना विचारे
वैदिक छंद
वैदिक
छंद वेदों के
मंत्रों में प्रयुक्त कवित्त मापों को कहा जाता है। श्लोकों में मात्राओं की संख्या और उनके लघु-गुरु
उच्चारणों के क्रमों के समूहों को छंद कहते हैं - वेदों में कम से कम १५ प्रकार के
छंद प्रयुक्त हुए हैं। गायत्री छंद इनमें सबसे प्रसिद्ध है जिसके नाम ही एक मंत्र
का नाम गायत्री मंत्र पड़ा है। इसके अलावे अनुष्टुप, त्रिष्टुप इत्यादि छंद हुए हैं।
पिंगल
द्वारा रचित छंदशास्त्र वैदिक छंदों की सबसे मान्य विवेचना है।
इनके
विवरण इस सूची में दिए गए हैं-
छंद नाम
|
मात्राओं की संख्या
|
विन्यास
|
उदाहरण - टीका
|
अत्यष्टि
|
६८
|
१२+१२+८+८+८+१२+८
|
ऋग्वेद ९.१११.३
|
अतिजगती
|
५२
|
११ + १० + १० + १० + ११
|
ऋग्वेद ५.८७.१
|
अतिशक्वरी
|
६०
|
१६ +१६ + १२ +८ ८
|
६.१५.६
|
अनुष्टुप
|
३२
|
८ +८ +८ +८
|
३.५३.१२ (सबसे प्रचिन छन्द है)
“जिस प्रकार हिन्दी में
दोहा की लोकप्रियता और सरलता है ठिक उसी प्रकार संस्कृत में अनुष्टुप की है “
|
अष्टि
|
६४
|
१६ +१६+ १६+ ८+ ८
|
४.१.१, २.२२.१
|
उष्णिक्
|
२८
|
८+ ८+ १२
|
३.१०.३
|
एकपदा
विराट
|
१०
|
१०
|
१०.२०.१, इसको दशाक्षरा भी कहते हैं क्योंकि एक ही
पङक्ति में १० अक्षर होते हैं।
|
गायत्री
|
२४
|
८+ ८+ ८
|
३.११.४, प्रसिद्ध गायत्री
मंत्र
|
जगती
|
४८
|
१२+१२+१२+१२
|
९.६८.१
|
त्रिषटुप
|
४४
|
११ +११+ ११+ ११
|
१०.१.३
|
द्विपदा
विराट
|
२०
|
१२ ८ १० १०
|
|
धृति
|
७२
|
१२+१२+ ८+ ८+ ८+ १६+ ८
|
४.१.३
|
पंक्ति
|
४०
|
८+ ८+ ८+ ८+ ८
|
५.६.२
|
प्रगाथ
|
७२
|
८+ ८+ ८+ १२+ १२+ १२+ १२
|
३.१६.३
|
प्रस्तार
पंक्ति
|
४०
|
१२+ १२+ ८+ ८
|
६.९.७५
|
बृहती
|
३६
|
८+ ८+ १२+ ८
|
३.९.१
|
महाबृहती
|
४४
|
८+ ८+ ८+ ८+ १२
|
६.४८.२१
|
विराट
|
४०
|
१०+ १० +१०+ १०
|
६.२०.७
|
शक्वरी
|
५६
|
८ +८+ ८+ ८+ ८+ ८+ ८
|
५.२७.५
|
|
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